उत्तराखंड का मनसा देवी मंदिर हरिद्वार जिले से 3 किलोमीटर दूर शिवालिक पहाड़ी पर स्थित है. मनसा देवी मंदिर की मान्यता है कि जो भी भक्त यहां सच्चे मन से माता से मुरादें मांगता है, उसकी हर जरूरी पूरी होती है.
मनसा देवी मंदिर परिसर में ही एक पेड़ है जिसकी शाखाओं पर लोग धागा बांधकर मन्नत मांगते हैं और पूरी होने पर उसे खोलने भी आते हैं.
जानकारों का कहना है कि मनसा देवी मंदिर का निर्माण राजा गोला सिंह ने 1811 से 1815 के बीच किया था. लोग तब से अपनी मनोकामना मांगने के लिए मंदिर पहुंचते हैं.
पौराणिक कथाओं के मुताबिक, कश्यप ऋषि की 13 पत्नियां थीं. इनमें से कद्रू भी एक थी. कद्रू से ही नागवंश की उत्पत्ति हुई. कद्रू ने शेषनाग, वासुकि, तक्षक आदि नागों को जन्म दिया.
साथ ही एक कन्या को भी जन्म दिया. जिसका नाम जरत्कारू रखा गया. यही जरत्कारू मनसा देवी कहलाईं. मनसा देवी नागों की बहन हैं. मनसा माता ने भगवान शिव से शिक्षा प्राप्त की. इसलिए मनसा देवी को भगवान शिव की पुत्री भी कहा जाता है.
शिव पुराण के मुताबिक, नाग माता कद्रू ने एक बार एक कन्या की प्रतिमा बनाई, उसी समय अंधकासुर के उत्पात से क्रोधित शिव के मस्तक से पसीना टपका, जो मूर्ति पर ही गिरा.
मूर्ति साकार हो उठी और एक कन्या की तरह रोने लगी. इसलिए कहा जाता है कि मनसा देवी का जन्म शिवजी के मस्तक से हुआ है.
बता दें कि बिहार के मैथिल क्षेत्र, भागलपुर, मधुबनी इलाकों में सावन में मनसा देवी की पूजा होती है. इसके अलावा बंगाल और असम में भी मनसा देवी की कथाएं प्रचलित हैं. नागपंचमी पर इन राज्यों में विशेष पूजा का प्रावधान है.
मनसा देवी को सांपों की देवी के रूप में पूजा जाता है. इन्हें शक्ति स्वरूपा माना जाता है. इतना ही नहीं मनसा देवी को नागवासुकी की बहन माना जाता है.
मनसा देवी मंदिर में विशेष भोग के रूप में गुड़ और मखाना चढ़ाने की परंपरा है. मनसा देवी को गुड़ और मखाना अति प्रिय है. जो भी भक्त मनसा देवी के दर्शन करने आता है, वह अपने साथ गुड़ और मखाना लेकर आता है.