बच्चे के दिल में सुराख कर सकती है ये बीमारी, अगर प्रेग्नेंट महिला करेंगी ऐसी लापरवाही
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बच्चे के दिल में सुराख कर सकती है ये बीमारी, अगर प्रेग्नेंट महिला करेंगी ऐसी लापरवाही

हर मां-बाप की ख्वाहिश होती है कि उसका बच्चा हेल्दी पैदा हो, लेकिन कई बार प्रेग्नेंसी के दौरान लापरवाही के कारण वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट जैसी दिल की परेशानी हो सकती है. 

बच्चे के दिल में सुराख कर सकती है ये बीमारी, अगर प्रेग्नेंट महिला करेंगी ऐसी लापरवाही

What is Ventricular Septal Defect: वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट (VSD) दिल की एक जन्मजात (Congenital) बीमारी है, जिसमें हार्ट के निचले दो चैम्बर्स (वेंट्रिकल्स) को अलग करने वाली दीवार (Septum) में एक छेद होता है. इस होल के कारण ऑक्सीजन रिच (Oxygen-rich) और ऑक्सीजन पूअर (Oxygen-poor) ब्लड आपस में मिल जाता है. इसकी वजह, दिल और फेफड़ों पर एक्ट्रा प्रेशर पड़ता है, जिससे वक्त के साथ हार्ट की एफिशिएंसी अफेक्ट हो सकती है.

VSD क्यों होता है?
1. जन्मजात कारण: VSD ज्यादातर पैदाइश के वक्त ही मौजूद होता है. भ्रूण के दिल का विकास प्रेग्नेंसी के शुरुआती हफ्तों में होता है. इस दौरान अगर सेप्टम पूरी तरह बंद नहीं हो पाता, तो VSD बन सकता है.

2. जेनेटिक फैक्टर: कुछ मामलों में ये जेनेटिक फैक्टर्स से होता है, खासकर जब परिवार में पहले से दिल से जुड़ी जन्मजात बीमारी रही हो.

3. क्रोमोसोमल डिसऑर्डर: जैसे डाउन सिंड्रोम (Down Syndrome) या दूसरे जन्मजात डिसऑर्डर्स में VSD की संभावना ज्यादा रहती है.

4. प्रेग्नेंसी के दौरान हार्मफुल एक्सपोजर: प्रेग्नेंसी में शराब, स्मोकिमग, कुछ हार्मफुल दवाएं, रेडिएशन या अनकंट्रोल्ड डायबिटीज़ भी VSD के खतरे को बढ़ा सकते हैं.

5. कभी-कभी बाद में डेवलप होना: रेयर मामलों में, हार्ट अटैक या हार्ट इंफेक्शन (endocarditis) के बाद भी एडल्ट्स में VSD हो सकता है.

VSD के लक्षण
VSD का साइज और एरिया लक्षणों की इंटेंसिटी तय करते हैं.

छोटा VSD: अक्सर कोई लक्षण नहीं देता और कई बार खुद ही बंद हो जाता है.

मिडियम से बड़ा VSD: जन्म के कुछ समय बाद या बचपन में लक्षण दिखा सकता है.

आम लक्षण

1. सांस लेने में दिक्कत: खासकर फिजिकल एक्टिविटीज के दौरान या रोते वक्त.

2. बार-बार सांस का इंफेक्शन: जैसे न्यूमोनिया या ब्रोंकाइटिस.

3. थकान और कमजोरी: बच्चे जल्दी थक जाते हैं और खेलकूद में एक्टिव नहीं रह पाते.

4. तेज दिल की धड़कन (Tachycardia).

6. भूख कम लगना और वजन न बढ़ना: शिशुओं में वजन का विकास धीमा हो जाता है.

7. स्किन का नीला पड़ना (Cyanosis): बड़े छेद और गंभीर मामलों में, खासकर अगर फेफड़ों में ब्लड प्रेशर बढ़ जाए.

VSD का डायग्नोसिस
VSD का पता लगाने के लिए डॉक्टर फिजिकल एग्जामिनेशन और अलग-अलग टेस्ट करते हैं.

1. स्टेथोस्कोप से जांच: डॉक्टर अक्सर दिल की अजीब से आवाज (Heart murmur) सुनकर शक करते हैं.

2. इकोकार्डियोग्राफी (Echocardiogram): ये सबसे सटीक टेस्ट है, जिसमें अल्ट्रासाउंड से हार्ट स्ट्रक्चर और ब्लड फ्लो को देखा जाता है.

3. इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ECG): दिल की धड़कन और इलेक्ट्रिक एक्टिविटीज की जांच करता है.

4. चेस्ट एक्स-रे: दिल और फेफड़ों के साइज में बदलाव का पता चलता है.

5. कार्डियक कैथेटराइजेशन: खास मामलों में, होल के आकार, लोकेशन और फेफड़ों के ब्लड प्रेशर को नापने के लिए किया जाता है.

VSD का इलाज
इलाज इस पर डिपेंट करता है कि दिल में छेद कितना बड़ा है, लक्षण कितने गंभीर हैं, और क्या वो खुद बंद हो सकता है या नहीं.

1. निगरानी (Observation)
छोटे VSD जिनमें कोई गंभीर लक्षण नहीं हैं, वो अक्सर बचपन में खुद बंद हो जाते हैं. ऐसे मामलों में डॉक्टर रेगुलर चेकअप और इकोकार्डियोग्राम से निगरानी करते हैं.

2. दवाएं

डाययूरेटिक्स (Diuretics): शरीर में एक्ट्रा फ्लूइड कम करके हार्ट पर दबाव घटाते हैं.

ACE inhibitors: ब्लड प्रेशर और हार्ट के वर्कलोड को कम करने में मदद करते हैं.

डिजॉक्सिन (Digoxin): हार्ट की पंपिंग क्षमता बढ़ाता है.

3. सर्जरी

ओपन-हार्ट सर्जरी: बड़े या गंभीर VSD में छेद को पैच से बंद किया जाता है.

कैथेटर-आधारित क्लोजर: कुछ मामलों में बिना ओपन सर्जरी के, कैथेटर द्वारा डिवाइस डालकर छेद को बंद किया जा सकता है.

कॉम्पलिकेशन मैनेजमेंट: अगर VSD के कारण फेफड़ों का ब्लड प्रेशर बढ़ गया है या हार्ट फेलियर हो रहा है, तो उसका इलाज भी जरूरी होता है.

क्या हो सकते हैं कॉम्पलिकेशंस?
अगर VSD का समय पर इलाज न हो, तो ये परेशानियां हो सकती हैं, जैसे:-

1. फेफड़ों में हाइपरटेंशन (Pulmonary Hypertension)

2. हार्ट फेलियर (Heart Failure)

3. दिल की धड़कनों का इरेगुलर होना (Arrhythmia)

4. एंडोकार्डाइटिस (Endocarditis)

5. आइज़ेनमेंजर सिंड्रोम (Eisenmenger Syndrome)

VSD का प्रिवेंशन
कई मामलों में VSD को पूरी तरह रोका नहीं जा सकता, लेकिन कुछ कदम जोखिम को कम कर सकते हैं, जैसे-

1. प्रेग्नेंसी में सावधानी
सिगरेट, शराब और नशीली चीजों से दूर रहें. बेवजह दवाओं का सेवन न करें और डॉक्टर से सलाह लें. प्रेग्नेंसी में डायबिटीज और थायरॉइड जैसी बीमारियों को काबू में रखें.

2. न्यूट्रीशन
प्रेग्नेंट महिलाओं को फॉलिक एसिड, आयरन और दूसरे जरूरी पोषक तत्वों का पर्याप्त सेवन करना चाहिए.

3. जेनेटिक काउंसलिंग
अगर परिवार में जन्मजात हार्ट डिजीज का इतिहास है, तो प्रेग्नेंसी से पहले जेनेटिक सलाह लें.

4. इंफेक्शन से बचाव
प्रेग्नेंसी में रूबेला (German measles) जैसी बीमारियों से बचाव के लिए टाइम पर वैक्सीनेशन लगवाएं.

इन बातों को समझें
वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफेक्ट एक कॉमन लेकिन गंभीर पैदाइशी दिल की बीमारी है. इसका वक्त पर डायग्नोसिस और सही मैनेजमेंट बच्चों और एडल्ट्स दोनों के लाइफ की क्वालिटी को बेहतर बना सकता है. छोटे VSD अक्सर बिना इलाज के भी बंद हो जाते हैं, लेकिन बड़े या लक्षण वाले VSD में दवाओं और सर्जरी की जरूरत पड़ सकती है. प्रेग्नेंसी में सेहत का ख्याल और रेगुलर मेडिकल चेकअप इस कंडीशन के रिस्क को कम करने में मदद कर सकते हैं.

 

(Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मक़सद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.)

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Shariqul Hoda

ज़ी न्यूज में सीनियर सब एडिटर. हेल्थ और लाइफस्टाइल की स्टोरीज करते हैं. नेशनल, इंटरनेशनल, टेक, स्पोर्ट्स, रिलेशनशिप, एंटरटेनमेंट, हेल्थ और लाइफस्टाइल का लंबा तजुर्बा है. जर्नलिज्म करियर की शुरुआत 2...और पढ़ें

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